Monday 3 September 2012


discussion


क्या सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर प्रतिबंध उचित है-
आज डी.पी. २ के छात्रों ने मीडिया में हिंदी की कक्षा में विषय सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर प्रतिबंध लगाने हेतु अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त कीं। सोशल नेटवर्किग  जन-जन की अभिव्यक्ति बन गया है। केवल युवा ही नहीं अपितु बुजुर्ग लोग भी (मेरे कहने का मतलब ६० से ऊपर की आयु वर्ग) इस माध्यम से जुड़कर विचारों का आदान-प्रदान कर अपने को सहज महसूस कर रहे हैं। ऐसे में असम की घटनाओं के कारण इन साइट्स पर रोक लगाने का सरकार का विचार उचित नहीं है सरकार को इसका दुरुपयोग करने वालों पर रोक लगानी चाहिए आई.टी एक्ट को मजबूत करना चाहिए। aa
प्रतिबंध से ज्ञान के दरवाजे बंद न करें
डी.पी. के छात्र अबीर जैन ने कहा कि आज का युग तकनीकी का युग है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स का मकसद सकारात्मक है। फिर दुरुपयोग तो हर क्षेत्र में हो सकता है ये साइट्स बहुत जागरूक हैं यदि किसी ने कुछ गलत हरकत की साइट पर रिपोर्ट कर उसे बाहर किया जा सकता है। बजाए प्रतिबंध लगाने से बेहतर यह होगा कि ऐसे असामाजिक तत्वों को साइट से निकाल फेंके और ज्ञान के दरवाजे बंद न करें।
आज के टेक सैवी लोगों के लिए कुछ भी कठिन नहीं
सुधांशी ने कहा कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स बंद कर देनी चाहिए। माना कि भारत लोकतांत्रिक देश है जहाँ किसी को किसी की निजी जिंदगी में दख़ल देने का कोई हक नहीं है। मगर हम एक ऐसे देश के निवासी हैं जहाँ जन भलाई के लिए कोई कड़ी व्यवस्था नहीं है। यदि व्यवस्था है भी तो उसका पालन नहीं होता। आज छोटे बच्चे का भी १८ वर्ष की आयु से कम फेसबुक पर अकाउंट है। वह बच्चा अपनी उम्र कम बताकर यह काम करता है। ऐसे में उसका दिमाग पढ़ाई से ज़्यादा रोज की न्यूज फीड करने पर होता है। तो सोचिए वह अपना भविष्य क्या बनाएगा? लोग कहते हैं प्रतिबंध से बेहतर है संपादन मगर क्या आज के टेक सैवी लोगों के लिए संपादन को हानि पहुँचाना आसान नहीं है।
प्रतिबंध समस्याओं का समाधान नहीं
अक्षिका का कहना है कि यह सुविधा लोगों से जुड़ने के लिए है न कि लोगों को अलग करने के लिए है। हमें इन साइट्स के जरिए होने वाली समस्याओं का समाधान, लोगों को जागृत करके करना चाहिए। इनका उपयोग करते समय पूरी सतर्कता रखना चाहिए। अतः प्रतिबंध समस्याओं का समाधान नहीं|
कक्षा के अन्य छात्र यश गांधी का कहना है कि यदि सोशल नेटवर्किंग साइट्स की सुरक्षा के लिए सख्ती की आवश्यकता है। इन्हें प्रतिबंधित करना जरूरी नहीं है।
इस प्रकार मिली-जुली प्रतिक्रियाओं के माध्यम से छात्रों का संदेश सभी प्रबुद्धजनों तक पहुँचेगा तथा छात्रों में अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के प्रति आत्मविश्वास बाढ़ेगा।